जुलाई का महीना था और सुबह-सुबह का वक्त। कॉलेज का पहला दिन था, तो गेट पर बहुत भीड़ थी। नए बच्चे आए हुए थे, सबके चेहरे पर थोड़ी घबराहट थी, थोड़ी उत्सुकता और बहुत सारे सपने थे।
उन्हीं में एक लड़का था, नमीत। वो एक छोटे शहर से आया था और कंधे पर अपना बैग टाँगे हुए कैंपस में घुस रहा था। उसके दिल की धड़कनें तेज़ थीं। वो सोच रहा था, "ये नया सफ़र कैसा होगा? मुझे दोस्त मिलेंगे या मैं अकेला रह जाऊँगा?"
तभी उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी। वो लॉन के पास एक पेड़ की छाँव में खड़ी थी और किसी किताब में खोई हुई थी। उसके हाथ में एक कप था और हवा में कॉफी की खुशबू फैली हुई थी। ये लड़की थी, चैत्राली। उसने चश्मा लगाया हुआ था और उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, जैसे उसे दुनिया की कोई परवाह न हो।
नमीत कुछ देर उसे देखता रहा और फिर खुद से ही बोला, "वाह! कॉलेज का पहला दिन और इतना अच्छा नज़ारा।"
क्लास में जब रोल नंबर पुकारे गए, तो नमीत और चैत्राली की बेंच पास-पास निकली। नमीत थोड़ा हिचकिचाया और फिर बोला, "हाय, मैं नमीत हूँ।"
चैत्राली ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाय, मैं चैत्राली हूँ।"
जैसे ही क्लास ख़त्म हुई, सब बच्चे कैंटीन की ओर भागे। नमीत को याद आया कि यही तो वो लड़की है जिसे उसने सुबह देखा था। उसने हिम्मत की और चैत्राली से पूछा, "यहाँ की कॉफी पीना चाहोगी?"
चैत्राली हँस पड़ी और बोली, "कॉफी के बिना तो मेरी पढ़ाई अधूरी है। चलो।"
कैंटीन में बहुत भीड़ थी, पर उन्हें खिड़की के पास वाली एक टेबल मिल गई। कॉफी के कप से भाप निकल रही थी और बाहर हल्की बारिश हो रही थी। ये सब कुछ किसी फिल्म के सीन जैसा लग रहा था।
चैत्राली ने कॉफी का पहला घूँट लिया और बोली, "यहाँ की कॉफी सच में अच्छी है, पर इसे अकेले पीने में मज़ा नहीं आता।"
नमीत ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "तो फिर आज से मैं तुम्हारा कॉफी पार्टनर हूँ?"
चैत्राली हँस दी और 'हाँ' में सिर हिला दिया।
उस पल नमीत को समझ आया कि कॉलेज सिर्फ़ किताबों और क्लास से नहीं बनता, बल्कि ऐसे ही छोटे-छोटे पलों से बनता है। और शायद, यही उसकी कहानी की शुरुआत थी।
कॉलेज का माहौल धीरे-धीरे जाना-पहचाना लगने लगा। नमीत और चैत्राली अक्सर एक ही प्रोजेक्ट ग्रुप में होते थे। चैत्राली बहुत होशियार और तेज़ थी, जबकि नमीत शांत और मेहनती था।
एक दिन क्लास के बाद चैत्राली ने हँसते हुए कहा, "तुम्हें पता है? तुम बहुत सीरियस लगते हो। जैसे तुम्हारी ज़िंदगी का मकसद सिर्फ़ टॉप करना हो।"
नमीत मुस्कुराया और बोला, "और तुम्हें देखकर लगता है कि तुम ज़िंदगी को एक मज़ेदार किताब की तरह जीती हो।"
चैत्राली ने जवाब दिया, "शायद इसीलिए हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं।"
धीरे-धीरे उनकी दोस्ती पूरे कॉलेज में मशहूर हो गई। हर दिन क्लास के बाद दोनों एक साथ कैंटीन जाते थे और उसी खिड़की वाली टेबल पर दो कप कॉफी के साथ बैठते थे।
एक दिन चैत्राली ने कहा, "पता है? ये कॉफी सिर्फ़ एक ड्रिंक नहीं है, ये मेरी थेरेपी है। जब भी मैं परेशान होती हूँ, तो कॉफी सब ठीक कर देती है।"
नमीत ने कप उठाते हुए कहा, "तो आज से मैं तुम्हारी इस कॉफी थेरेपी का पार्टनर हूँ।"
दोनों की हँसी में एक सादगी थी, और उस कॉफी में धीरे-धीरे कुछ नया पकने लगा था।
कॉफी के कप के साथ उनकी दोस्ती अब सिर्फ़ क्लास तक सीमित नहीं रही। ये एक रिश्ता था जो धीरे-धीरे दोस्ती से आगे बढ़ रहा था। कॉलेज की ज़िंदगी अब तेज़ हो गई थी, और नमीत और चैत्राली की दोस्ती पूरे क्लास में जानी-पहचानी हो गई थी। लोग अक्सर कहते थे, "ये दोनों एक साथ ही अच्छे लगते हैं।"
एक शाम, बारिश हो रही थी। दोनों कैंटीन में अपनी पुरानी टेबल पर बैठे थे। चैत्राली बारिश की बूँदों को देख रही थी। नमीत ने पूछा, "तुम्हें बारिश पसंद है?"
चैत्राली ने कहा, "बारिश मुझे बचपन की याद दिलाती है। पर अब सब कुछ बदल गया है।" उसकी आवाज़ में थोड़ी उदासी थी।
नमीत ने उसे देखा और बोला, "शायद इसलिए ही कॉफी अच्छी लगती है, ये यादों को हल्का कर देती है।"
चैत्राली मुस्कुराई और बोली, "और शायद इसलिए ही मुझे तुम्हारा साथ भी अच्छा लगता है।"
उनकी बातें अब क्लास और असाइनमेंट से हटकर ज़िंदगी की गहरी बातों पर होने लगी थीं।
एक रात, दोनों कैंपस के फेस्टिवल की तैयारी के बाद देर तक कैंटीन में बैठे थे। चैत्राली ने पूछा, "नमीत, तुम्हारा सपना क्या है?"
नमीत ने सोचा और कहा, "मेरा सपना बहुत बड़ा नहीं है। मैं बस सुकून से ज़िंदगी जीना चाहता हूँ और कोई ऐसा हो जिसके साथ मैं हर शाम कॉफी पर बैठकर दिल की बातें कर सकूँ।"
चैत्राली ने उसकी आँखों में देखा और पूछा, "तो क्या तुम मुझे अपने सपनों में शामिल कर रहे हो?"
नमीत थोड़ा शरमाया और बस मुस्कुरा दिया। उसकी इस मुस्कान में वो सब था जो वो अभी तक कह नहीं पाया था।
उस दिन से कॉफी सिर्फ़ एक ड्रिंक नहीं, बल्कि उनके प्यार की निशानी बन गई। हर घूँट के साथ उनके दिल की बातें और भी गहरी होती गईं।
दिसंबर की एक ठंडी शाम थी। क्रिसमस फेस्टिवल का माहौल था और हर तरफ रोशनी थी। पर नमीत और चैत्राली उसी पुरानी टेबल पर बैठे थे, दो कप गर्म कॉफी के साथ।
चैत्राली ने हँसते हुए कहा, "कसम से, ये कॉफी न होती तो मैं सर्दियों में जम जाती।"
नमीत ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "और अगर मैं कॉफी लाने वाला न होता तो तुम कैंटीन तक आती ही नहीं।"
उसकी हँसी में एक अलग ही एहसास था, एक छुपा हुआ इकरार।
कुछ दिनों बाद, 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे था। कैंपस में हर जगह गुलाब और कार्ड थे। पर नमीत और चैत्राली अपनी कॉफी वाली टेबल पर बैठे थे।
नमीत ने कॉफी का कप आगे बढ़ाते हुए कहा, "आज की कॉफी स्पेशल है क्योंकि इसमें एक बात घुली हुई है।"
चैत्राली ने हैरानी से पूछा, "कौन सी बात?"
नमीत ने गहरी साँस ली और बोला, "चैत्राली, मुझे नहीं पता प्यार क्या होता है। पर जब तुम साथ होती हो, तो सब कुछ आसान लगता है। तुम्हारी हँसी और तुम्हारे साथ कॉफी पीकर लगता है कि यही मेरी दुनिया है। शायद यही प्यार है। क्या तुम भी ऐसा महसूस करती हो?"
चैत्राली की आँखें नम हो गईं। उसने धीरे से कहा, "हाँ नमीत, मुझे भी यही लगता है। कॉफी चाहे कड़वी हो या मीठी, तुम्हारे साथ हमेशा अच्छी लगती है।"
दोनों मुस्कुरा दिए। उस मुस्कान में उनका इकरार छुपा था।
कॉलेज का आख़िरी साल शुरू हो चुका था। जहाँ पहले उनकी कॉफी हँसी-मज़ाक लाती थी, अब वही कप कभी-कभी ख़ामोशी से भर जाते थे। नमीत प्लेसमेंट की तैयारी में लग गया और चैत्राली M.B.A के नोट्स में खो गई।
एक दिन चैत्राली ने धीरे से कहा, "नमीत, अगर हमारी नौकरी अलग-अलग जगह लगी तो हमारी कॉफी का क्या होगा?"
नमीत कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, "कॉफी वही रहेगी, बस जगह बदल जाएगी। पर मैं वादा करता हूँ कि जब भी मिलेंगे, तुम्हें तुम्हारी पसंदीदा कॉफी ज़रूर पिलाऊँगा।"
कॉलेज के आख़िरी दिन दोनों फिर से उसी कैंटीन में थे। मालिक अंकल ने मुस्कुराते हुए उन्हें दो कप कॉफी दी और कहा, "ये मेरी तरफ से है। तुम दोनों की वजह से मेरी मशीन सबसे ज़्यादा चली है।"
चैत्राली ने धीरे से कहा, "नमीत, याद है जब हमने पहली बार साथ में कॉफी पी थी? तुमने कहा था कि कॉफी सुकून देती है। पर आज ये मुझे रुला रही है।"
नमीत ने उसकी ओर देखा और बोला, "क्योंकि ये आख़िरी है... कम से कम इस कैंपस की।"
जब वो दोनों कैंटीन से बाहर निकले, तो हवा में अब भी कॉफी की खुशबू तैर रही थी। वो खुशबू, जो हमेशा उनकी यादों में रहेगी।
चैत्राली ने नमीत का हाथ थामा और बोली, "नमीत, अलविदा मत कहना। बस इतना कहना कि 'फिर मिलेंगे'।"
नमीत ने उसकी ओर झुककर कहा, "फिर मिलेंगे, चैत्राली, चाहे कहीं भी, कभी भी। और हाँ, अगली बार कॉफी मैं ही बनाऊँगा।"
समय पंख लगाकर उड़ गया। नमीत की नौकरी मुंबई में लग गई और चैत्राली दिल्ली चली गई। शुरुआती कुछ महीनों तक वो एक-दूसरे से बात करते रहे, पर धीरे-धीरे ज़िंदगी की रफ़्तार ने उन्हें अलग कर दिया।
पाँच साल बाद, एक बरसात की शाम नमीत एक कॉन्फ्रेंस के लिए दिल्ली आया। थकान की वजह से उसने सोचा कि थोड़ी कॉफी पी जाए। वो एक छोटे से कैफ़े में घुस गया और खिड़की के पास बैठ गया। तभी उसकी नज़र दरवाज़े पर पड़ी।
वहाँ चैत्राली खड़ी थी, वही मुस्कान और वही आँखें।
दोनों की नज़रें मिलीं, और पल भर में लगा जैसे वक़्त पाँच साल पीछे चला गया हो। चैत्राली ने धीरे से पूछा, "कॉफी...?"
नमीत मुस्कुराया और जवाब दिया, "हाँ, और इस बार मैं बनाऊँगा, याद है?"
कॉफी के कप टेबल पर आए और जैसे ही दोनों ने पहला घूँट लिया, सारी दूरियाँ, सारी ख़ामोशियाँ गायब हो गईं।
चैत्राली ने कहा, "नमीत, इतने साल बीत गए, पर कॉफी का स्वाद अब भी तुम्हारी याद दिलाता है।"
नमीत ने उसका हाथ थाम लिया, "चैत्राली, देर सही, पर आज हम फिर से मिल गए।"
वो आख़िरी कॉफी जो कॉलेज की कैंटीन में पी थी, आज एक नए कप में उनके सामने रखी थी। और दोनों ने एक साथ कहा, "ये आख़िरी नहीं, बल्कि हमेशा की कॉफी है।"
कुछ मुलाक़ातें हफ्तों और महीनों में बदल गईं। एक शाम, नमीत ने चैत्राली को फिर से उसी पुराने कॉलेज कैंपस में बुलाया। वो कैंटीन के बाहर खड़े होकर बोला, "चैत्राली, कॉफी तो मैं रोज़ पिला सकता हूँ, पर क्या तुम अपनी ज़िंदगी मेरे साथ बिताना चाहोगी?"
चैत्राली की आँखों में आँसू आ गए। उसने बिना कुछ कहे 'हाँ' में सिर हिला दिया।
कॉलेज की कैंटीन की वो आख़िरी कॉफी, जो कभी अलविदा की निशानी बनी थी, आज उसी कॉफी ने उनकी ज़िंदगी को फिर से जोड़ दिया था।
क्योंकि सच्चा प्यार, कॉफी की तरह होता है। चाहे कितना भी समय बीत जाए, उसकी खुशबू कभी ख़त्म नहीं होती।
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